हिन्दू काल गणना के अनुसार मास में ३० तिथियाँ होतीं हैं, जो दो पक्षों में बंटीं होती हैं। चन्द्र मास एक अमावस्या के अन्त से शुरु होकर दूसरे अमावस्या के अन्त तक रहता है। अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र का भौगांश बराबर होता है। इन दोनों ग्रहों के भोंगाश में अन्तर का बढना ही तिथि को जन्म देता है।
तिथियों को मुख्य रूप से पांच भागों में बांटा गया है। ये पांच भाग हैं नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा। क्रमानुसार पहली तिथि यानी प्रतिपदा होगी नंदा, द्वितीया भद्रा, तृतीया जया, चतुर्थी रिक्ता और पंचमी पूर्णा। इसके बाद पुनः षष्ठी नंदा, सप्तमी भद्रा…. इस तरह यह क्रम चलता रहेगा।
नंदा तिथि: प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी नंदा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में व्यापार-व्यवसाय प्रारंभ किया जा सकता है। भवन निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए यही तिथियां सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं।
भद्रा तिथि: द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी भद्रा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में धान, अनाज लाना, गाय-भैंस, वाहन खरीदने जैसे काम किए जाना चाहिए।
जया तिथि: तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी जया तिथियां कहलाती हैं। इन तिथियों में सैन्य, शक्ति संग्रह, कोर्ट-कचहरी के मामले निपटाना, शस्त्र खरीदना, वाहन खरीदना जैसे काम कर सकते हैं।
रिक्ता तिथि: चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी रिक्ता तिथियां कहलाती हैं। इन तिथियों में गृहस्थों को कोई कार्य नहीं करना चाहिए। तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए ये तिथियां शुभ मानी गई हैं।
पूर्णा तिथि: पंचमी, दशमी और पूर्णिमा पूर्णा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में मंगनी, विवाह, भोज आदि कार्यों को किया जा सकता है।
सिद्धा तिथि –
1,6,11 तिथियों को नन्दा कहते हैं। यह तिथियां शुक्रवार को हो तो सिद्धा होती हैं।
2, 7, 12 तिथियों को भद्रा कहते हैं। यह तिथियां बुधवार को हो तो सिद्धा होती हैं।
3, 8, 13 तिथियों को जया कहते हैं। यह तिथियां मंगलवार को हो तो सिद्धा होती हैं।
4, 9, 14 तिथियों को रिक्तता कहते हैं। यह तिथियां शनिवार को हो तो सिद्धा होती है हैं।
5,10,15 तिथियों को पूर्णा कहते हैं। यह तिथियां बृहस्पतिवार को हों सिद्धा होती है।