सूर्यदेव को अर्घ्य

कई बार सूर्य पर जल चढाने के लिऐ कहा जाता है और कई बार जल के साथ कंकू या शक्‍कर डालने के लिऐं भी कहा जाता है वास्‍तव में सूर्य का सम्‍बन्‍ध आत्‍मा से होता है तथा यह आपकी आत्मिक शकित को बढाता है आत्मिक शक्ति से ही संसार पर वजिय प्राप्‍त की जा सकती है वही आपका प्रभाव एवं तेज भी ग्रहो के राजा सूर्य से ही बनता है सभी ग्रहों की अपनी अलग अलग वीशेषता होती है
सूर्यदेव को अर्घ्य देने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। बिहार में छठ ब्रत में उगते हुए सूर्य को तथा अस्तांचल सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यदि आपके जन्मकुंडली में सूर्य ग्रह नीच के राशि तुला में है तो अशुभ फल से बचने के लिए प्रतिदिन सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। वही यदि सूर्य किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर सुबह स्थान में बैठा है तो सूर्योपासना करनी चाहिए। साथ ही जिनकी कुंडली में सूर्यदेव अशुभ ग्रहो यथा शनि, राहु-केतु, के प्रभाव में है तो वैसे व्यक्ति को अवश्य ही प्रतिदिन नियमपूर्वक सूर्य को जल अर्पण करना चाहिए।यदि कुण्‍डली में सूर्य नीच का हो या लग्‍न मे स्‍ वग़ही होकर विराजमान हो तो ऐसी स्थिति में सूर्य का वशिेष पूजन किया जाता है
यही नहीं यदि कारोबार में परेशानी हो रही हो या नौकरी में सरकार की ओर से परेशानी हो रही हो तो सूर्य की उपासना का लाभ मिलता है। स्वास्थ्य लाभं के लिए भी सूर्य की उपासना करनी चाहिए। किसी भी प्रकार के चर्म रोग हो तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे शीघ्र ही लाभ होता है। सूर्य देव को जल अर्पण करने से सूर्यदेव की असीम कृपा की प्राप्ति होती है सूर्य भगवान प्रसन्न होकर आपको दीर्घायु , उत्तम स्वास्थ्य, धन, उत्कृष्ट संतान, मित्र, मान-सम्मान, यश, सौभाग्य और विद्या प्रदान करते हैं

सूर्योदय के प्रथम किरण में अर्घ्य देना सबसे उत्तम माना गया है।
सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व  नित्य-क्रिया से निवृत्त्य होकर स्नान करें।
उसके बाद उगते हुए सूर्य के सामने आसन लगाए।
पुनः आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।
रक्तचंदन आदि से युक्त लाल पुष्प, चावल आदि तांबे के पात्र में रखे जल या हाथ की अंजुलि से तीन बार जल में ही मंत्र पढ़ते हुए जल अर्पण करना चाहिए।
जैसे ही पूर्व दिशा में  सूर्योदय दिखाई दे आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़कर इस तरह जल अर्पण करे की सूर्य तथा सूर्य की किरण जल की धार से दिखाई दें।
ध्यान रखें जल अर्पण करते समय जो जल सूर्यदेव को अर्पण कर रहें है वह जल पैरों को स्पर्श न करे।
सम्भव हो तो आप एक पात्र रख लीजिये ताकि जो जल आप अर्पण कर रहे है उसका स्पर्श आपके पैर से न हो पात्र में जमा जल को पुनः किसी पौधे में डाल दे।
यदि सूर्य भगवान दिखाई नहीं दे रहे है तो कोई बात नहीं आप प्रतीक रूप में पूर्वाभिमुख होकर किसी ऐसे स्थान पर ही जल दे जो स्थान शुद्ध और पवित्र हो।
जो रास्ता आने जाने का हो भूलकर भी वैसे स्थान पर अर्घ्य (जल अर्पण) नहीं करना चाहिए। 

पुनः उसके बाद दोनों हाथो से जल और भूमि को स्पर्श करे और ललाट, आँख कान तथा गला छुकर भगवान सूर्य देव को एकबार प्रणाम करें।

अर्घ्य देते समय सूर्य देव के मन्त्र का अवश्य ही जप करना चाहिए। आप जल अर्पण करते समय स्वयं ही या अपने गुरु के आदेशानुसार मन्त्र का चयन कर सकते है। सूर्यदेव के लिए निम्न मन्त्र है —

सामान्यतः जल अर्पण के समय निम्न मंत्रो का जप करना चाहिए।

‘ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा :।।
ऊँ सूर्याय नमः।
ऊँ घृणि सूर्याय नमः।
‘ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।

आप भी यह ध्‍यान रखें कि सूर्य के उदय होने से लगभग पन्‍द्रह मिनिट पूर्व ही इस कार्य को क्रियान्वित कर देना चाहिऐं ताकि उसका आपकों उचित फल मिल सके1 प्रातः आठ या नौबजें के करीब जल देना उतना प्रभावी एवं लाभदायक नही होता है जितना की सूर्योदय से पूर्व होता है प्रखर सूर्य पर जल चढाना वर्जित हैं

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