पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था ,
कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया
और
जटायु के जीवन का एक ही पुण्य था ,
कि उसने समय पर क्रोध किया
परिणामस्वरुप एक को बाणों की शैय्या मिली और एक को प्रभु श्री राम की गोद
इसलिये “क्रोध भी तब पुण्य बन जाता है, जब वह “धर्म” और “मर्यादा” के लिए किया जाए,
और
सहनशीलता भी तब पाप बन जाती है जब वह “धर्म” और “मर्यादा” को बचा नहीं पाती ।।